धनतेरस का पर्व क्या है तथा धनतेरस पर्व के पीछे का महत्व – नमस्कार दोस्तों कैसे हैं आप सभी उम्मीद है कि आप सभी स्वस्थ होंगे। मैं एक बार फिर से आप सभी का स्वागत करता हूं हमारे इस बिल्कुल नए आर्टिकल पर। आज इस आर्टिकल में हम आपके लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय पर जानकारी लेकर आए हैं। आज इस आर्टिकल में हम आपको बताने जा रहे हैं धनतेरस पर्व के बारे में।
आज हम आपको बताएंगे धनतेरस पर्व क्या है? धनतेरस पर्व क्यों मनाया जाता है? तथा धनतेरस पर्व मनाने के पीछे क्या महत्व है? अगर आप भी इन सभी जानकारियों के बारे में जानना चाहते हैं तो आज का यह आर्टिकल आखिरी तक पूरा पढ़िए।
दोस्तों वैसे तो हमारे देश में अनेक पर्व है जो हर धर्म और संप्रदाय से संबंधित हैं पर इनमें से कुछ त्यौहार ऐसे हैं जिनकी बात ही कुछ अलग है। अगर आप भारत देश के नागरिक हैं तो आपको स्वयं पर गौरवान्वित महसूस होना चाहिए क्योंकि हमारे देश में आपको हर महीने अलग-अलग प्रकार के त्यौहार देखने को मिल जाएंगे। जिन्हें सभी धर्म और संप्रदाय के लोग एक साथ मिलकर मनाते हैं। हमारे देश में छोटे और बड़े मिलाकर कुल सैकड़ों त्यौहार है। जिनमें से कुछ त्यौहार बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाते हैं और इन्ही में से एक त्यौहार दीपावली का त्यौहार है।
जब दीपावली का त्यौहार आता है तो यह अपने साथ सैकड़ों खुशियां लेकर भी आता है। दीपावली त्यौहार सिर्फ एक त्यौहार ही नहीं है यह लोगों की एक भावना है जो लोग अपनी खुशियों के रूप में व्यक्त करते हैं। दीपावली का त्यौहार आने के 2 दिन पहले ही तैयारियां शुरू हो जाती हैं और इस त्यौहार के दो दिन बाद तक भी चलते हैं । दीपावली त्यौहार के 2 दिन पहले एक धनतेरस नाम का पर्व होता है । यह पर्व भी बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
दोस्तों आप सभी ने दीपावली के बारे में सुना होगा और दीपावली के बारे में जानकारी भी रखते होंगे, लेकिन धनतेरस एक ऐसा पर्व है जिसके बारे में बहुत ही कम लोगों को जानकारी होती है। इसीलिए आज इस आर्टिकल में हम आप को धनतेरस पर्व के बारे में संपूर्ण जानकारी देने जा रहे हैं।
धनतेरस पर्व क्या है ?
दोस्तों वैसे तो दीपावली के पर्व से ठीक दो दिन पहले आप सभी के घर में धनतेरस का पर्व मनाया जाता होगा। बहुत कम लोगों को धनतेरस पर्व की सटीक जानकारी होती है। अगर आप नहीं जानते कि धनतेरस पर्व क्या है तो मैं आपको बता दूं कि यह पर्व मां लक्ष्मी तथा धनवंतरी महाराज को समर्पित है।
इस दिन धन की देवी माता लक्ष्मी की एवं धन्वंतरी देवता की विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है। धनतेरस का त्यौहार दीपावली के ठीक 2 दिन पहले हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि मां लक्ष्मी तथा धन्वंतरि दोनों ही देवताओं का जन्म समुद्र मंथन के साथ हुआ था और आज के दिन ना सिर्फ महालक्ष्मी धनवंतरी की बल्कि कुबेर भगवान की भी पूजा और अर्चना की जाती है।
ऐसी मान्यता है कि जो कोई धनतेरस में पूजा-अर्चना करता है वह अकाल मृत्यु नहीं मरता है। धनतेरस के दिन धन खर्च करने का महत्व है। इस दिन लोग अपने घर में कोई ना कोई नई वस्तु खरीद कर जरूर लाते हैं।
धनतेरस के दिन चांदी के बर्तन तथा चांदी या सोने के आभूषण खरीदना बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन बहुत से लोगों के घर में नए वाहनों का भी आगमन होता है।
धनतेरस कब मनाया जाता है ?
दोस्तों धनतेरस का पर्व प्रतिवर्ष कृष्ण पक्ष के तेरस को मनाया जाता है। यह त्यौहार धन की देवी लक्ष्मी कुबेर तथा धन्वंतरी को समर्पित है और इस दिन किसी किसी स्थानों पर यमराज की पूजा अर्चना भी की जाती है। यह त्योहार दीपावली के ठीक 2 दिन पहले होता है। पहले धनतेरस उसके बाद में छोटी दीपावली जिसे हम नरक चतुर्दशी कहते हैं और उसके पश्चात मुख्य दीपावली का त्यौहार होता है।
धनतेरस की कथा
आइए दोस्तों अब हम आप को धनतेरस की कथा सुनाते हैं।
धनतेरस की कथा पुराणों से ली गई है। पुराणों में ऐसा लिखा है कि बहुत ही पुराने समय में हमारे देश में हेम नाम के एक बहुत ही प्रतापी राजा थे लेकिन उनके पुत्र रत्न की कमी थी। कई बार पूजा-अर्चना करने के बाद भी उनको कोई पुत्र नहीं हो रहा था। इसके बाद उन्होंने अनेक यज्ञ और हवन किया और देवताओं को खुश किया तब जाकर उनको कहीं पुत्र प्राप्त हुआ।
जब पुत्र थोड़ा बड़ा हुआ तो राजा ने पंडितों से उस पुत्र की कुंडली बनवाई, लेकिन दोस्तों कुंडली में लिखा था कि जब इस पुत्र का विवाह होगा तो विवाह के मात्र 10 दिन बाद ही इसकी मृत्यु हो जाएगी। जब राजा ने यह सुना तो उन्हें बहुत ही दुख हुआ और उन्होंने भविष्य में कभी भी अपने पुत्र की शादी ना करने का फैसला किया।
पुत्र के मन में विवाह की इच्छा उत्पन्न ना हो इसलिए राजा ने अपने पुत्र को एक बहुत ही विचित्र जगह में भेज दिया जहां पर स्त्री का कोई नामोनिशान नहीं था। एक दिन राजा का पुत्र जंगल में टहल रहा था। तभी वहां पर उसको एक सुंदर कन्या मिली। राजा के पुत्र को उस कन्या से प्रेम हो गया। राजा के बार-बार मना करने पर भी पुत्र ने चोरी छुप कर उस कन्या से विवाह कर लिया।
जैसा कि ज्योतिष में कुंडली में पहले ही बता दिया था कि शादी के 10 दिन बाद एक पुत्र की मृत्यु हो जाएगी। ठीक वैसा ही हुआ विवाह के मात्र 10 दिन बाद वह घड़ी समीप आ गई जिस घड़ी उसके पुत्र की मृत्यु होने थी।
राजा के पुत्र के प्राण हरने के लिए स्वयं यमराज धरती पर आए। यमराज जब राजा के पुत्र का प्राण अपने साथ ले जा रहे थे तो उसके घर में कोलाहल मच गया और सभी रोने भी लिखने लगे। सभी को रोते देखकर यमराज को बहुत दुख हुआ और यमराज ने सोचा कि इस के प्राण वापस कर दिए जाएं।
पर वह ऐसा नहीं कर सकते थे क्योंकि वह मृत्यु के देवता थे और मृत्यु दंड देना उनका काम था । अंत में यमराज को बहुत दुख हुआ फिर भी वह अपने कर्तव्य को पूरा करने के लिए राजा के पुत्र के प्राण को लेकर यम लोक वापस लौट गए।
जब यमराज राजा के पुत्र के प्राण को लेकर यमलोक पहुंचे तो वहां पर उनके सेनापति ने यमराज से पूछा कि आप परेशान क्यों है? तो यमराज ने कहा कि मुझे नव युवकों के प्राण करना पसंद नहीं है। मुझे इससे बहुत दुख होता है ।
अकाल मृत्यु का प्राण हरना मुझे अच्छा नहीं लगता। तब सेनापति ने यमराज से कहा कि क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे किसी की अकाल मृत्यु ना हो। इस पर यमराज ने उत्तर दिया कि यदि मनुष्य प्रतिवर्ष कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन शाम को अपने घर के दक्षिण दिशा में दीपक जलाए तो कभी भी उसके अकाल मृत्यु नहीं होगी।
तब से लेकर आज तक यह प्रथा अनवरत काल से चली आ रही है और इसीलिए धनतेरस का पर्व मनाया जाता है, जिसमें दक्षिण दिशा की ओर दीपक जलाना शुभ माना जाता है।
निष्कर्ष
दोस्तों यह आपके लिए धनतेरस पर्व से जुड़ी एक छोटी सी जानकारी थी। आज इस आर्टिकल में हमने आपको बताया धनतेरस पर्व क्या है? तथा धनतेरस पर्व क्यों मनाया जाता है? हमें उम्मीद है कि यह जानकारी आपको पसंद आई होगी। अगर आप इसी प्रकार की अन्य जानकारियों के बारे में जानना चाहते हैं तो हमारा आर्टिकल प्रतिदिन पढ़िए। हम अपने इस ब्लॉग पर आपके लिए अनेक विषय पर नई नई जानकारी लेकर आते रहते हैं। अपना कीमती समय देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद